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स मे॒ वपु॑श्छदयद॒श्विनो॒र्यो रथो॑ वि॒रुक्मा॒न्मन॑सा युजा॒नः। येन॑ नरा नासत्येष॒यध्यै॑ व॒र्तिर्या॒थस्तन॑याय॒ त्मने॑ च ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa me vapuś chadayad aśvinor yo ratho virukmān manasā yujānaḥ | yena narā nāsatyeṣayadhyai vartir yāthas tanayāya tmane ca ||

पद पाठ

सः। मे॒। वपुः॑। छ॒द॒य॒त्। अ॒श्विनोः॑। यः। रथः॑। वि॒रुक्मा॑न्। मन॑सा। यु॒जा॒नः। येन॑। न॒रा॒। ना॒स॒त्या॒। इ॒ष॒यध्यै॑। व॒र्तिः। या॒थः। तन॑याय। त्मने॑। च॒ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:49» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:5» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य किससे किसको प्राप्त होवें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! (यः) जो (अश्विनोः) प्राण और अपान के (विरुक्मान्) विविधदीप्तियुक्त (मनसा) अन्तःकरण से (युजानः) युक्त होता हुआ (रथः) रमणीय व्यवहार (मे) मेरे (वपुः) शरीर वा रूप को (छदयत्) बली करता है तथा (येन) जिससे (तनयाय) सन्तान के लिये (त्मने, च) और अपने लिये (नरा) नायक अग्रगामी (नासत्या) जिनके असत्य विद्यमान नहीं वे अध्यापक और उपदेशक योगीजन (इषयध्यै) चलने के लिये जो (वर्त्तिः) मार्ग है उसको (याथः) प्राप्त होते हैं (सः) वह तुम लोगों को चाहिये कि जानकर अन्तःकरण से आत्मा में निरन्तर यत्न =युक्त करने योग्य हो ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस वायु से योगीजन विविध प्रकार के विज्ञान को प्राप्त होते हैं तथा जिससे सब जगत् वा सब प्राणी जीते हैं, उसके अभ्यास से परमात्मा को जान कर मुक्ति-पथ से आनन्द को प्राप्त होओ ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः केन किं प्राप्नुयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! योऽश्विनोर्विरुक्मान् मनसा युजानो रथो मे वपुश्छदयद्येन तनयाय त्मने च नरा नासत्या अध्यापकोपदेशकौ योगिनाविषयध्यै यो वर्त्तिस्तं याथः स युष्माभिर्विदित्वा मनसात्मनि नियोजनीयः ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (मे) मम (वपुः) शरीरं रूपं वा (छदयत्) बलयति (अश्विनोः) प्राणाऽपानयोः (यः) (रथः) रमणीयो व्यवहारः (विरुक्मान्) विविधदीप्तियुक्तः (मनसा) अन्तःकरणेन (युजानः) (येन) (नरा) नरौ नायकौ (नासत्या) अविद्यमानाऽसत्यौ (इषयध्यै) एषयितुम् (वर्त्तिः) मार्गः (याथः) प्राप्नुतः (तनयाय) सन्तानाय (त्मने) आत्मने (च) ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! येन वायुना योगिनो विविधं विज्ञानं प्राप्नुवन्ति येन सर्वं जगत्सर्वे प्राणिनश्च जीवन्ति तदभ्यासेन परमात्मानं विदित्वा मुक्तिपथेनानन्दं प्राप्नुत ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्या वायूने योगी विविध प्रकारचे विज्ञान प्राप्त करतात व ज्याच्यामुळे सर्व जग व सर्व प्राणी जीवित असतात त्याचा अभ्यास करून परमात्म्याला जाणावे व मुक्तीचा आनंद मिळवावा. ॥ ५ ॥